Giriraj Charan Shila
सनातन गोस्वामी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा प्रतिदिन करते थे. नब्बे वर्ष की उम्र में भी वे परिक्रमा कर रहे थे कि अचानक गिर पड़े. तभी एक गोप बालक ने संभाला एवं परिक्रमा का नियम तोड़ने को कहा. सनातन कहाँ मानने वाले थे. फिर भी परिक्रमा करते रहे और दोबारा गिर पड़े. फिर वो ही बालक सामने आया एवं बोला,” बाबा, तू बूढों हो गयो है. ताऊ माने नाए परिक्रमा किये बिना. ठाकुर तो प्रेम से रीझे है , तपस्या से नाही.” फिर भी गोस्वामीजी परिक्रमा करते रहते. अब उनके ह्रदय में बालक की तस्वीर बस गयी तथा बालक की आवाज़ उनके कानो में गूंजती रहती. ध्यान में भी वही बालक दिखता. संपूर्ण चिंतन उसी बालक का होने लगा. वे सोचने लगे कि कैसा बालक है की उसके चिंतन में मैं अपने इष्ट तक को भूल गया. यह साधारण बालक नही हो सकता. ज़रूर ये मदन गोपाल ही हैं.
एक बार फिर गोस्वामीजी परिक्रमा कर रहे थे. वही बालक उनसे नियम तोड़ने के लिए आग्रह करने लगा. गोस्वामीजी तो उस बालक का इंतज़ार ही कर रहे थे. उन्होंने अपना सिर बालक के चरणों में रख दिया एवं प्रार्थना की कि प्रभु प्रकट हो जाओ. गिरिराज मेरे प्राण हैं एवं परिक्रमा प्राणों की संजीवनी है. प्राण रहते इसे नही छोड़ सकता. यह कहकर गोस्वामीजी ने जैसे ही सिर चरणों से उठाया तो सामने मदन गोपाल जी को देखा एवं मदन गोपाल ने अपना दाहिना चरण गिरिराज शिला पर रखा था.
गिरिराज परिक्रमा के स्थान पर गिरिराज शिला की परिक्रमा को कहकर प्रभु अंतर्धान हो गये. आज भी श्री मदन गोपाल के चरण चिह्न युक्त यह शिला वृन्दावन में श्री राधा दामोदर के मंदिर में विद्यमान है.