Guru recognized His Disciple : Sripad Nivas Acharya Prabhu
आचार्य प्रभु एक वृक्ष के नीचे अपने शिष्यों सहित भगवत प्रसंग में व्यस्त थे|
उन्होंने देखा कि एक तेजस्वी नव युवक अपनी नव विवाहिता पत्नी को गाजे बाजे के साथ पालकी पर घर ले जा रहा था| तब आचार्य प्रभु ने वेदना भरे कंठ से अपने शिष्यों से कहा ” देखो ये नवयुवक कैसा रूपवान और तेजस्वी है एवं देव मूर्ती जैसा लगता है पर इसका यौवन प्रभु की सेवा में न लगकर, कामिनी की सेवा में होगा, यह सोचकर ही मुझे दुःख होता है|”
आचार्य प्रभु के वे शब्द उस नवयुवक के कानो में पहुँच गये| उस युवक ने जैसे ही मुड़कर आचार्य प्रभु की ओर देखा, उसे ऐसा लगा जैसे उसके ह्रदय के अन्दर बिजली खेल गयी और उस एक मुहूर्त में उसका सब कुछ बदल गया|
कुछ दिन बाद वही नवयुवक आचार्य प्रभु के समीप गया और उनके चरणों में रो-रो कर कहने लगा, “आपने मेरे नेत्र खोल दिए हैं| मुझे अपने चरणों में आश्रय प्रदान करें तथा हमें माया से मुक्त करें|” आचार्य प्रभु ने उसे ह्रदय से लगाकर अश्रु सिक्त कंठ से कहा, “मैंने जब से तुम्हे देखा है तबसे तुम्हे प्राप्त करने के लिए प्रभु से कातर भाव से प्रार्थना करता रहा हूँ| आज तुम्हे पाकर मैं बहुत सुखी हूँ|”
ये नवयुवक थे महाप्रभु के लीला परिकर श्री चिरंजीव सेन के पुत्र, श्री रामचंद्र कविराज| रामचंद्र लौट कर घर नही गये| यथाविधि आचार्य प्रभु से दीक्षा ग्रहण कर उनकी सेवा करने लगे|
जय जय श्री राधे||