jai jai nitai chand

आँख जिसपर पड़ गयी
नेत्रों से निकलती धार देख
नास्तिकों की आँख भर गयी
माया के दासों ने है पाया
असली स्वामी का पता
पहली दफ़ा पाया है सबने
दास होने का मज़्ज़ा ।।1।।जय जय निताइ जय जय निताइ

जय जय निताइ चाँद रे!
आलिंगन जिसे मिल गया
मक्खन के जैसा दिल हुआ
भक्ति की शक्ति भड़ गयी
मस्ती भरी उस चाल से
पृथ्वी का तल मचल गया
आनंद की भाड़ ऐसी आयी
महिना लम्हे सा गुज़र गया ।।2।।जय जय निताइ जय जय निताइ
जय जय निताइ चाँद रे!

जन्मों के पापों का सारा खाता
पल भर में आज मिट गया
लोगों की ऐसी किस्मत जागी
कुछ किये बिना ही सब मिल गया
जो प्रेम ब्रह्मा ने न पाया
वो आज यूँ ही बट गया
आज भी मिलता है प्रेम उसको
जिसने भी इनका नाम लिखा ।।3।।
जय जय निताइ जय जय निताइ
जय जय निताइ चाँद रे!
unknown