NITAI KI KRIPA-
निताइ की कृपा की सीमा

निताइ का नाम है मेरे लिए मेवा ।
मुट्ठी में आ गयी राधा की दुर्लभ सेवा ।।
भक्तिरत साधु का जगत को अन्तिम उपदेश (सर्व-शास्त्र-सार):
निताइ का नाम है क्षमा कृपा का मेवा ।
निताइ रूप लीला धाम उनके भक्तों का खेला ।।
अपराधी को भी देतें राधा की मंजरी सेवा ।।।
निताइ के नाम में गौर राधा कृष्ण भी हैं ।
क्योंकि निताइ डूबे तीनों के स्मरण में हैं ।।
जितना मैं दूसरों को देता निताइ नाम ।
उतना निताइ मुझे दें कुण्ड, कुंज का दर्शन ।।
वाह वाह एक से बढ़कर एक निताइ कविता पढ़कर मेरा जीवन आज धन्य हुआ
सच्चे गूरू की है एक ही प्रार्थना ।
शिष्यों के निताइ प्रेम की न रहे कोई सीमा ।।
राधा की बहन जाह्नवा अनंग मंजरी ।
निताइ नाम के प्रचारक पर देतीं हैं कृपा सारी ।।
अपने कुंज में प्रवेश राधा कुण्ड में युगल सेवा ।
बिन माँगे देतीं उसे जो करे निताइ प्रचार सेवा ।।
निताइ का नाम लेने की यह अहैतुकी महिमा ।
निताइ निष्ठा में उसे पागल करे नहीं कोई सीमा ।।
राधा की सुवर्ण कान्ति ले कृष्ण बने गौर राय ।
अनंग का कांचन भाव ले बलाइ बने निताइ ।।
जैसे कृष्ण की प्राणेश्वरी है श्रीमती राधा ।
वैसे उनके भैय्या निताइ की है राधा की बहन जाह्नवा ।।
सृष्टि का एक सर्वोत्तम तीर्थ राधा कुण्ड में जाह्नवा बैठक ।
जहाँ अनंग कुंज में वे बनी निताइ और गोपीनाथ दर्शक ।।
जितना ज्यादा मैं अपराध पाप करूँ भारी ।
उतना ज्यादा मेरे निताइ कृपा बरसाय सारी ।।
जिन अपराधियों से दूर भागे गौर कृष्ण भगवान ।
उन पापियों को गले लगाते मेरे निताइ चाँद ।।
राधा कृष्ण गोपी भक्ति गौर ने प्रकाशित की ।
लेकिन उसे समझने की शक्ति निताइ ने हमें दी ।।
मछली से देवता तक यदि मेरा पुनर्जन्म हो ।
निताइ तेरे नाम का तब भी विस्मरण न हो ।।
मेरी स्मृति और मति है अति महा मंद ।
मेरी खबर कौन लेगा बिना निताइ चाँद ।।