Sri Nivas Acharya ke Nishtha – Life History
एक बार श्रीमंमहाप्रभु श्रीवास के घर के मंदिर में कीर्तन में मस्त थे कि घर के भीतर ही श्रीवास के इकलोते पुत्र की देववश मृत्यु हो गई। पूरा परिवार शोक सागर में विलाप करने लगा। तब उसने अपनी पत्नी से कहा कि महाप्रभु आंगन में नृत्य कीर्तन में डूबे है यदि किसी ने रोकर विघ्न डाला तो मै गंगा में डूबकर प्राण त्याग दूंगा। वास्तव में यह आनंद मनाने का समय है कि श्रीहरि स्वयम उपस्थित होकर अपना नाम गाकर नृत्य कर रहे है उस समय यदि किसी के प्राण निकल जाये तो यह उस जीव का कृष्ण से मिलन का आनंद उत्सव है। स्त्रीयों का रोना बंद कराकर श्रीवास महाप्रभु के पास आकर कीर्तन करने लगे।
कीर्तन के बाद महाप्रभु बोले आज श्रीवास के घर कुछ अमंगल तो नहीं हुआ है? मुझे ऐसा महसूस हो रहा है। श्रीवास ने कहा – प्रभु जहां मंगलमूर्ति आप विराजमान है वहां अमंगल कैसे हो सकता है? तब एक भक्त ने निवेदन किया कि श्रीवास के पुत्र का देहांत हो गया है २-३ घंटे हो चुके है। आपके कीर्तन में विघ्न न पड़े इसलिए ये शोक समाचार आपको नहीं सुनाया । हें गोविन्द! कहते हुआ महाप्रभु ने लम्बी साँस ली और कहने लगे – “जो मेरी प्रसन्नता के लिए अपनी इकलौती संतान का दुःख भूल जाये, ऐसे भक्तों को मै कैसे छोड़ सकता हू?” इतना कह वे हें श्रीवास ! कहकर उसे गले से लगाकर रोने लगे, श्रीवास भी अश्रु बहाने लगे।
श्रीवास ने महाप्रभु के चरण पकड़कर बोले आप ही तो मेरे माता-पिता, भाई और पुत्र है ऐसी कृपा करें जिससे आपको कभी नो भूलूं । तब महाप्रभु ने अश्रुपूर्ण नेत्रों सो कहा – हे श्रीवास ! मै और नित्यानंद तुम्हारे दो पुत्र हुए, जो तुम्हे कभी नहीं छोड़ेंगे । महाप्रभु में पुत्र का रूप देखकर भक्तगण जय हो जय हो ! कहकर अश्रू बहाने लगे ।
महाप्रभु ने स्वयं भक्तों के साथ गंगातट पर जाकर उसका दाह संस्कार किया।
Bahoot sunder story haihas. Aaj k samya itna atal prem dekhne sunne KO nhi milta hai
Radhe RAdhe..